कहलाया वो सूतपुत्र [ Poem in Hindi about Karn]

था महावीर, था शूरवीर,

था महाधनुर्धर, था सूर्यपुत्र

पर कहलाया वह सूतपुत्र।



अपमानो के कांटो से।

बिंधता था जिसका रोम रोम।

वो धैर्यवान, वह महापुरुष।

 कहलाया जो सूतपुत्र॥



था साहस और ललक भी थी।

पर गुरु ने शिक्षा का किया निषेध।

एक और उपेक्षा कि असि से।

हुआ था घायल वह सूतपुत्र॥



परशुराम से ज्ञान भी पाया,

पर फिर शापित हो उसे गंवाया।

कितनी विकट परिस्थितियों से।

 लड़ा अकेला वह सूर्यपुत्र॥



लोक लाज से त्यागा था।

वो माँ के हाथों भी छला गया।

क्या सह सकता था इतनी पीड़ा।

 गर होता वह कोई सूतपुत्र॥



 कवच दिया कुण्डल भी दिए।

पर नाम जिसे ना दिया गया।

कितने अग्नि कुंडों से।

पार हुआ वह सूर्यपुत्र॥



उस सम दानवीर न कोई।

ना कोई योद्धा ही बना।

कुल का नहीं प्रतिभा से नाता।

इसलिए लड़ा वह सूर्यपुत्र॥



दिया दान में कवच भी अपना।

 मृत्यु को अंगीकार किया।

 मैत्री का ऋण चुकाने हेतु।

धर्म विरुद्ध लड़ा वह सूर्यपुत्र॥



क्या उसका कद था लेकिन।

नहीं मिला वह पद उसको।

जीवन पर्यन्त शापित सा।

 जीता रहा वह सूर्यपुत्र॥



मरणोपरांत गर मिला था सबकुछ।

क्या उसका फिर मूल्य था।

जीवन कुछ और ही होता।

 यदि पहले ही सब पाता सूर्यपुत्र॥













































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