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आजा उतरके ए खुदा अब है क्या तू देख रहा [Hindi Poem on terrorism]

आजा उतर आ  ए खुदा ,अब है क्या तू देख रहा। उतार चोला मानवता का ,खुद मानव ही फेंक रहा। नहीं समझ आता अब बिल्कुल  , कौन जानवर कौन इंसान। बनके जानवर लिए जा रहा , इंसां ही इंसां की जान।। नाम तेरा लेके  वो , खेल रहे हैं खूनी खेल। भक्त तेरे निरीह होकर , रहे हैं हर मंज़र को झेल। हर मंज़र में आंसू हैं , हर मंज़र में बेदर्दी है। इक नई कौम सी उभरी है , जिसका धर्म ही दहशतगर्दी है। चिताओं से अपनी देह को , है राक्षस वो सेंक रहा।। आजा उतरके ए खुदा , अब है क्या तू देख रहा। उतार चोला इंसानियत का , खुद इंसान  ही फेंक रहा। पिता का था वो लाडला , माँ की आँखों का तारा था। छीन लिया बेरहमों ने , उनके जीवन का वो सहारा था। उन मासूमों की खता थी क्या जो इस तरह उनको मार दिया। अक्स - ए - खुदा  कहाने वाले मासूमों को , मौत के घा ट उतार दिया। फिर उन हैवानों की करनी में , तेरा ही  उल्लेख रहा।। आजा उतरके ए खुदा अब है क्या तू देख रहा। उतार चोला इंसानियत का खुद इंसान  ही  फेंक रहा। मानवता  मिटाने का , उनका इरादा पक्का है। इस स्वर्ग से सुन्दर धरा को बस , नरक बना