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तीस्ता का सौंदर्य [Hindi Poem on River]

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ये कविता समर्पित है सिक्किम की सुन्दर घाटियों के बीच से निकलती तीस्ता नदी के लिए ,नदी जिसे हमारे देश में माँ का दर्जा  देते हैं क्योंकि ये निस्वार्थ होकर हम सबका ख्याल रखती है। जहाँ से ये गुज़रती हैं वह सब हरा भरा बना देती हैं। सबकी प्यास बुझाती हुई ,पंछियों के कलरव को जीवित  रखती हुई ,किसानो की थकावट मिटाके उनकी मेहनत को उनके चेहरे की हसीं बनाती हुई बहती है। जब मैंने तीस्ता माँ को उन घुमावदार और विषम रास्तों से स्वच्छंदता से बहते हुए देखा तब ऐसा लगा  तुम बस अपने आपको बिना बदले अडिगता से बढ़ते रहो रास्ते कैसे भी हो मंज़िल आपकी आपको ज़रूर मिलेगी।   लेकिन इस कविता में मैंने उनके सौंदर्य और मनभावन गुणों को शब्दों में उकेरने की कोशिश की है।   अगर आपको महसूस हो तीस्ता माँ का ममता भरा बहाव तो सूचित अवश्य करें।  दिनकर जैसे ओज से निकली ,वो मस्ती और मौज से निकली।  बहती तीस्ता लगती जैसे ,बेटी पिता की गोद से निकली।  बलखाती ,इतराती ,इठलाती ,अविरल बहती जाती।  चलो मेरे संग मस्ती भरके ,जैसे  कहती जाती।  कहीं ठहरती,कहीं उछलती ,कहीं हिलोरे भरती दिखती।  कहीं धीर ,गंभीर सी तो , कही

Natural beauty

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प्रकृति माँ है तुम्हें नमन , निस्वार्थ हमें जीवित रखती हो। बगैर कुछ भी लिये हुए सतत ये ही करती रहती हो।       ना इक पल भी रूकती हो , ना इक पल भी थकती हो ।       तुम ही हो श्रोत अप्रतिम बल का तुम ही माँ महाशक्ति हो॥