सोने की चिड़िया- भाग-१


24 सितंबर 2014 को जब मंगल यान सफलतापूर्वक मंगल पर पहुँचा तब पूरे देश में एक गौरवशाली उत्सव मनाया जाने लगा। हर तरफ देशभक्ति की लहर दौड़ने लगी, क्यूँ ना हो आखिर इस सफलता के बाद भारत के अतिप्रतिभाशाली वैज्ञानिकों ने पूरे विश्व में अपने देश को अंतरिक्ष सक्षमता में सम्पूर्ण रूप से दक्ष बनाके अपना लोहा मनवा दिया।
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अच्छा लगता है जब हमारा देश विश्व की रफ़्तार से कदम मिलाकर चलता है। इससे ना सिर्फ़ देश का अपितु देशवासियों का उत्थान भी निहित है। आज हमारा देश नाभिकीय शक्ति, अंतरिक्ष उपलब्धियों, सशक्त सेना से परिपूर्ण है। औद्योगिक विकास, इंफ्रास्ट्रक्चर प्रगति पर है। इतना कुछ होने के बाद भी हम विकासशील हैं।
आज भी हम पूर्ण रूप से विकसित नहीं हैं आखिर क्यों?

कभी हम विश्वशक्ति हुआ करते थे, पर धीरे-धीरे हमारे लालच, स्वार्थ, भोग विलास का फायदा उठाकर बाहरी शक्तियों ने टुकड़ों में आके लूटा, फिर आकर राज करने लगे हम पर। पहले मुग़ल, फिर अंग्रेज़ इस तरह हम गुलामी के गहरे दलदल में फंसते चले गये। जब हमारे सम्मान को कुचला जा रहा था तब एक दर्द अंदर पनपके इस अपमानित और अभिशप्त जीवन से मुक्ति के उपायों को सुझाने लगा था। 

हम इस दलदल से निकलने के लिए अधीर थे क्योंकि हम अपनी जान को गिरवी रखकर अपनी आने वाली पीढ़ी को इस नासूर से मुक्त करना चाहहते थे। तब हमारी कोई जाति, छुआछूत आड़े नहीं आई सबका एक ही वंश था हिंदुस्तानी, एक ही जाति थी हिंदुस्तानी। इतिहास गवाह है कि हमने टूटकर नहीं जुड़कर इस देश को आज़ाद करवाया था। क्योंकि अगर उनके दर्द एक थे तो यक़ीनन ख़ुशी भी एक ही थी।

आज जब हम याद करते हैं मुगलो के अत्याचारों को, अंग्रेज़ों की अमानवीय प्रताड़नाओं का तो आत्मा भी काँप जाती है। कैसे हमारे देशवासियो को लड़ने के लिए भेजा जाता था, कैसे उनसे बेगारी ली जाती थी, कैदी बनते तो कैसी ह्रदय विदारक यातनाएँ दी जाती थीं। लेकिन उसके बाद भी हिम्मत फिर से जाग्रत हुई और सन 1857 की क्रांति से जो आग़ाज़ हुआ वह 1947 में सफल हुआ और हम फिर से अपने देश में सांस ले सके।

हमारे समस्त स्वतंत्रता सेनानी जब आज़ादी के बाद का सपना देखते होंगे तो सोचते होंगे कि हमारा देश एक दिन अपने गुणों, प्रतिभाओं, संस्कारों के द्वारा विश्व का चमकता सूरज होगा और आने वाली पीढ़ियाँ हमारी आहुतियों के बदले हमारे देश को हर क्षेत्र में अग्रणी बनाकर हमें सच्ची श्रद्धांजलि देंगे।

हमारे वह सभी महापुरुष और अनगिनत स्वतंत्रता सेनानी जिन्होंने हमारे स्वतंत्र, स्वच्छ, समृद्ध भारत के सपने को साकार करने के लिये अपने प्राणो की आहुति देकर भारत को आज़ाद कराया, क्या आज हम उनकी कसौटी पर खरे उतरे?
क्या हमने उनके बलिदान की क़द्र करते हुये श्रद्धांजलि दी?
क्या हम अपने देश के साथ न्याय कर रहे हैं?
अब जब हम आज़ादी के कई वर्षों में जी चुके हैं तो चलिए हम देखते हैं कि हम आजकल क्या कर रहे हैं?
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अभी पिछले कुछ समय की कुछ घटनाओं पर नज़र डालते हैं।
निर्भया कांड जिसमे एक मासूम को उसका शारीरिक शोषण के बाद उसके अंगों को दरिंदगी के साथ क्षति पहुचायी जाती है वह भी कई लड़कों के द्वारा जिसमे कुछ नाबालिग भी थे। पाँच साल, दो साल यहाँ तक कि कुछ महीनो की बच्चियों जिन्हे गोद में लेते हुए भी लगता है कि कही कोई चोट ना लगे हमारी वजह से और कुछ नरपिशाच उनका बलात्कार कर रहे हैं। कठुआ कांड और न जाने कितने ही अमानवीयता और वहशियत के किस्से हैं आज हर तरफ सुनाई दे रहे हैं।

उत्तर प्रदेश के फ़िरोज़ाबाद जिले एक कसबे में पुलिस चौकी के नज़दीक व्यापारी पिता-पुत्र की सुबह दुकान जाते वक़्त एकदम नई बोलेरो गाड़ी से निर्ममता से कुचलकर हत्या कर दी जाती है। जिस मामले में किसी को न पकड़ा जाता है न सजा होती है।
उसी कसबे में अपने घर के नज़दीक एक स्वर्णकार पिता-पुत्र को शाम को रोककर हथियार के दम पर लूटा जाता है और प्रतिरोध करने पर पुत्र को जो तीन बच्चों का पिता है उसे गोली मारके हत्यारे फरार हो जाते हैं। इस मामले में भी कोई कार्यवाही नहीं होती।

ये तो एक छोटे से कसबे की दो घटनाये हैं परन्तु सोचिये इतने बड़े देश में ऐसे कितने ही जगह पर कितने गुनाह सरे आम होते हैं। आज हमारे यहाँ गुनाह ही एक ऐसी चीज़ है जिसे करने से पहले कोई नहीं सोचता। उन्हें पता है हमारे यहाँ सज़ा ना पाने के लिए भ्रष्टाचार का बह्रमास्त्र उनके पास तैयार होता है। गुनाह को अंजाम देने से पहले ही जमानत की तैयारी होती है। बलात्कार होगा, हत्या होगी, लूट होगी, पर संपत्ति पर निरंकुश कब्ज़ा होगा लेकिन गिरफ्तारी नहीं होगी जब तक की उस पर मीडिया या किसी संगठन विशेष द्वारा समाज के सामने रखकर इन्साफ की गुहार न लगाईं जाये।

ये आंधी थमते नहीं दिखती है। कौन कर रहा है ये सब अंग्रेज़, मुग़ल? नहीं अब जो भी कर रहे हैं हमारे अपने लोग ही कर रहे हैं और अपनों से लड़ना कितना मुश्किल हो गया है। आज हमारे यहाँ सब असमंजस में ही हैं। शरीफ आदमी डरता है अपनी इज़्ज़त खोने से, शराफत खोने से और दायरा सीमित कर देता है, वहीँ असामाजिक तत्व सारी मर्यादाओं को दरकिनार करके वह सबकुछ करता है जिससे समाज शर्मशार होता है।

हमारे यहाँ राजनीति में लोग जाना चाहते हैं अपनी भयावह इच्छाओं की पूर्ति के लिए, निरंकुश रूप से अपने ग़लत कार्यों को करने के लिये, असामाजिक तत्वों को शह देने के लिये उनके जरिये अपने मकसद पूरे करवाने के लिये। क्योंकि परिभाषा ही बदल गई है राजनीति की, राजनीति देश के और देशवासियों के उत्थान के लिए होती है लेकिन दोनों के ही पतन का पर्याय बन गई है।

आज राजनेता अपना राजनीतिक उल्लू सीधा करने के लिये देश के अंदर अन्तर्युद्ध का माहौल बनाकर मतों का ध्रुवीकरण करते हैं जाति के आधार पर सामाजिक स्तर के आधार पर और हम उनका मंतव्य समझकर भी पता नहीं क्यों उनका अनुसरण करते हैं जबकि हम जानते हैं कि हमारी थाली में रोटी हमारे पुरुषार्थ से आती है और जो राजनेता माहौल बनाते हैं उससे सिर्फ़ बर्बादी, अशांति है। वह अपने घरों में रहते हैं और उनके द्वारा कराये गए दंगों, कत्लेआमों से तमाम निर्दोष तन, मन, धन और जीवन हैं। आज हम भारत बंद, धरना, आरक्षण में लगे हुए हैं रही सही कसर नक्सलवाद, माओवाद जैसा आंतरिक आतंकवाद और पडोसी देश से होने वाला आतंकवाद पूरा कर देता है। कितने परिवार ख़त्म हो जाते हैं, कितने बच्चे अनाथ हो जाते हैं, कितने माँ बाप अपनी आँखों के तारों को खो देते हैं।


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