सोने की चिड़िया- भाग-२

आज हमारे राजनेता हमें आपस में लड़ाकर इस देश की प्रगति को रोक रहे हैं। हमारे देश के इतने अवरोधक तो शायद अंग्रेज़ों के समय भी नहीं रहे होंगे। विभाजन के समय भारत के दो टुकड़े हुए लेकिन आज़ादी के साठ वर्ष पश्चात अनगिनत टुकड़े हैंभाषा के आधार परक्षेत्र के आधार परजाति के आधार पर और ये सब सिर्फ़ भारत की प्रगति के समय को आगे धकेलते जा रहे हैं। हमें इन सब से निकलना होगा।  

 एक तो हमारे यहाँ इन राजनीति में आने वालों के लिए कोई शैक्षिक अर्हता नहीं है। जिन्हें ये नहीं पता कि लोक सभा में कितनी सीटें होती हैं वह लोक सभा चुनाव के उम्मीदवार होते हैं। उल्टा उनके मंत्रालयों में नौकरी पाने के लिये उच्चतम शिक्षित होने के साथ और भी कुशलताओं का होना अनिवार्य है क्योंकि जिम्मेदारियों से भरा काम है और नेता अनपढ़ होआपराधिक प्रवृति का हो तब भी वह हमारा नेता बनकर आता है।

आज हमारे देश में जितने राज्य नहीं उनसे कई गुनी पार्टियाँ हैं। 1947 में हमारे देश का पार्टीशन हुआ था और आज "पार्टी" शन है। जितनी पार्टियाँ उतनी विचारधाराएँ परन्तु विचार एक कि मेरी पार्टी सत्ता में आये और कभी न जाये। कोई पार्टी मंदिर बनाना चाहती है कोई मस्ज़िदकोई पार्टी अपने ही देशवासियो को घृणा के साथ राज्य से भागना चाहती हैकोई भारतीय सेना के खिलाफ जंग करती है और राज करना चाहती है। किसी का भी मुद्दा भारत को आगे बढ़ाने का नहीं दीख पड़ता। कहाँ ले जा रहे हैं हम इस देश को?

अभी हाल ही में भारत के लौहपुरुष सरदार बल्लभ भाई पटेल जी को श्रद्धांजलि देने के लिए गुजरात के वड़ोदरा में सरदार सरोवर डैम पर उनकी 182 मीटर की मूर्ति बनाई गई। लौहपुरुष जैसा कोई भी द्रढ़ निश्चयी इतिहास में कोई नहीं दिखता। भारत के एकीकरण का पूरा श्रेय उन्हें ही है। इसीलिए उन्होंने लौहपुरुष की उपाधि से सम्मानित किया गया। लेकिन अगर उनके ध्येय उनकी भारत के विकास के लिए दूरदर्शिता को ग्रहण कर उनकी तरह मजबूत इरादों के साथ हम देशोन्नतरत हो जायें तो उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि होगी। क्योंकि 182 मीटर की मूर्ति से हम उनके कद को नहीं समायोजित किया जा सकता है।

 काश सब महापुरुषों के गुणों को अपनाकर हर भारतीय नागरिक उनकी जीती जागती मूर्ति बने तो कितना अच्छा हो। जब भी कुछ बुरा होता है तो हम कहते हैं कि अब भगत सिंह नहीं हैंचंद्रशेखर नहीं हैं जो सब ठीक करेंगे। दरअसल सारे महापुरुष सिर्फ़ उस नायक नहीं थे वे एक सोच हैं। कितना अच्छा हो की सामाजिक कुरीतियों से लड़ने वाले राजा राममोहन राय फिर से सामने आयेफिर से कोई विवेकानंद युवाओं के पथ प्रदर्शक बनेफिर से देश के दुश्मनों को नाकों चने चबवाने वाले भगत सिंह और चंद्रशेखर निकालके आये।

पहले देश सोने की चिड़िया कहलाता था क्योंकि हमारे देश में अकूत सोना थापर आज भी अकूत सोना है और हम इसे फिर से सोने की चिड़िया कह सकते हैं बस भावार्थ में विरोधाभास है। क्योंकि चेतनामानवताज़मीर सब सुसुप्तावस्था में है।
जैसे ही चुनाव आते हैं तो हमारे यहाँ ये बात नहीं होती की हमें अपने देश से बेरोज़गारी ख़त्म करनी है बल्कि मंदिर बनाएंगेमस्ज़िद बनाएंगेस्कूटी देंगेटैब देंगेलैपटॉप देंगे और ना जाने क्या-क्या प्रलोभन। क्या इससे उन्नति का मार्ग प्रशस्त होगामुझे नहीं लगता। हर हाथ रोज़गार होगासब स्वाबलंबी बनेंगेजब हमारी पढ़ाई का स्तर ऊँचा होगाजब हर कोई आत्म निर्भर होगा तब जाकर भारत नई ऊंचाइयों को छूकर अपनी पुरानी समृद्धि को प्राप्त करेगा।

 जब जापान जैसा छोटा देश इतनी बड़ी तबाही के बाद खुद को इतना मजबूत कर सकता हैफिर हम क्यों नहीं। और फिर हम पर कोई राज़ नहीं कर पाएगा क्योंकि हम आज बहुत सशक्त हैं बस थोड़ा-सा बदलाव और हम विश्व शक्ति बनेंगे और जब हमारा युवा हुंकार भरेगा तो सारा विश्व थर-थर काँप उठेगा। हम जागेंगेलड़ेंगे गुंडोंअसामाजिक तत्वों का बहिष्कार करके पार्टियाँ न देखकर लायक उम्मीदवारो को सत्ता में लाकर देश की तरक्की में सच्चा योगदान करेंगे और इस देश के लिए बलिदान देने वाले अमर शहीदों को सच्ची श्रद्धांजलि देंगे।

विश्व भाल पर लगा हुआ अरुण तिलक मेरा भारत
धर्म प्रवर्तक भूमि का सिरमौर है ये मेरा भारत।
विश्व ग्रंथो में है वर्णितमहाशक्ति ये मेरा भारत,
पावन धराअनुपम प्रकृति से परिपूर्ण ये मेरा भारत।
आओ मिलकर पुनः इसे सोने की चिड़िया बनायेंगेपरचम इसका एक बार फिर दुनिया में फहराएंगे। ।"



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