क्यूँ जागी अंतर्मन में मिलने की तुझसे आशा है।


क्यूँ  जागी अंतर्मन में मिलने की तुझसे आशा है।   
क्यूँ मेरा मन सागर की बाँहों में रहके भी प्यासा है।। 

कुसूर है मेरा या हालातों का समझ समझ नहीं मैं पाता हूँ। 
जितना पार करुँ उन लहरों को उतना पीछे आजाता हूँ।।

क्या इन उठते प्रश्नो के उत्तर भी मिलपाएंगे?
सबकी तरह क्या इस वक़्त के अधर भी सिल जायेंगे?

बढ़ती जाती संग समय के हृदय की मेरी पीड़ा है। 
फिर भी नहीं कोई छोर दिखे हाथ आती निराशा है।।  


क्यूँ  जागी अंतर्मन में मिलने की तुझसे आशा है।   
क्यूँ मेरा मन सागर की बाँहों में रहके भी प्यासा है।। 

हर कोशिश करके देख चुका हूँ दिखता असर नहीं कोई। 
सारी व्यथाओं से जूझ चुका हूँ छोड़ी कसर नहीं कोई। 

आज तुझे बिन देखे हो गया एक लम्बा अरसा है। 
नीर नयन से सावन की छटाओं की तरह बरसा है। 

फिर भी तू जहाँ भी है, दुआयें मेरी तेरे साथ रहेंगी। 
मिले तुझे वो सबकुछ जीवन में, जिसकी तुझको अभिलाषा है।।  

क्यूँ  जागी अंतर्मन में मिलने की तुझसे आशा है।   
क्यूँ मेरा मन सागर की बाँहों में रहके भी प्यासा है।। 

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