आज भी जब-जब बचपन की मुझको यादें आती हैं [Hindi Poem on Childhood]
आज भी जब-जब बचपन की मुझको यादें आती हैं।
उस भोलेपन और शरारतों को संग अपने ले आती हैं।
नंगे पाँव मिटटी में भी साफ़दिली से रहते थे।
खिलौने टूटने की अनूठी विरहा भी हम सहते थे।
ना डर था ना परवाह थी, विश्वास हमें था अपनों पर।
ना रोक-टोक ना पाबंदी थी, हमारे अलौकिक सपनो पर।
चाँद को छूना, फौजी बनना, करना दुश्मन पर वार पर वार।
सीख थी मिलती झगड़ा नहीं, बस करना सीखो सबसे प्यार।
लौटके जाऊँ उन लम्हों में, ये तड़प बहुत तड़पाती है।
आज भी जब-जब बचपन की मुझको यादें आती हैं।
उस भोलेपन और शरारतों को संग अपने ले आती हैं।
उसने मेरी इरेज़र लेली, उसने छीना मेरा लंच
और ना जाने कितनी ही शिकायतों का रहता था बंच।
नन्हें-नन्हें हाथों से मिट्टी के घरोंदे बनते थे
जो दिल कहता था करते थे, हर तरफ कूदते फिरते थे।
कितना अनोखा, और निराला था प्यारा संसार हमारा।
वो यादें ज़ेहन में आते ही, पलकों पर आंसू लाती हैं
आज भी जब-जब बचपन की मुझको यादें आती हैं।
उस भोलेपन और शरारतों को संग अपने ले आती हैं।
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