चाहत


मखमली बदन और अदाओं की ये लहर।
कि डूबे रहें तेरे नशे में मेरे शामोसहर॥
हया के पर्दे से झाँकती वो हुस्न की झलक।
छूके तेरे लवों को लवों से महसूस कराऊँ अपने लवों की कसक॥
भीगे हुए तेरे लवों से चुरालू नर्मी का एहसास।
पागल सा कर देती है तेरे एहसासों की प्यास॥
भीगे ग़ुलाब की पन्खुड़ीयों सा तेरे हुस्न का नज़ारा।
तुझमें खोने के लिएतड़पा देगा दिल पागल हमारा।
उफ़ तेरे इस हसीन बदन को खुद में समेटने की चाहत।
फ़रिश्तों का ईमान डोल जाए तो क्या कसूर है हमारा॥
मेरे छूने से तेरी हया की जो सिलवटें उभरेंगी।
बनके बेचैनी मेरे दिल में वो उतरेंगी॥
वो इतराते हुए बदन को अपनी बाँहों में भरके।
हसरत ए दिल पूरी करू चाहत में तुझपे टूटकरके॥
तेरी चूड़ीयों की खनक मुझे हर तरह से बहकाएगी।
तेरे इश्क के सुरूर में वो मुझे डुबाएगी॥
महक से तेरे ग़ुलाबी बदन की ख़ुमारी जो छाएगी।
पिघलके तेरे बदन पे वो मेरी महक हो जाएगी॥
वो गर्म आँहों के बीच में मचलती हुई बेताबीयाँ।
वो हया के पर्दे को गिराती हुई मदहोशीयाँ॥
तुझे मेरा मुझे तेरा बना देंगी इस क़दर।
मिल जाती है जैसे साहिल से सागर की लहर॥
करीबी तेरी मुझे कतरा कतरा जलाएगी।
उसी जलन के दरम्याँ तू मेरी रूह में समा जाएगी॥
मेरा तेरा अपना करके हर दूरी को मिटाएँगे।
गुल और महक बनके हम एक दूजे में खो जाएँगे॥

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