हिम्मत और धैर्य
हिम्मत और धैर्य ये दो वो शस्त्र हैं जिनके पास होने से हम इतने ताकतवर हो जाते हैं कि हम हर मुश्किल ,विपरीत ,जटिल परिस्थितिओं से बाहर आ सकते हैं। जंग हमारे अंदर की हो बाहर की हो हर जंग में विजयी हो सकते हैं, क्यूँकि ये हमें वो आत्मबल प्रदान करती हैं कि हम निराशावादी वक़्त की गिरफ्त में रहकर भी आशावादी भविष्य की सोच रखके उस जानलेवा समय से भी बाहर आ जाते हैं।
मैं इन ताकतों को पहचान चुका हूँ और आज ये ताकतें ही हैं की मैं आज ये लिख पा रहा हूँ। मैने जब अपने सबसे अज़ीज़ ,मेरे आदर्श ,मेरे दादाजी को खोया तब मुझे लगा जैसे अब सिर्फ शरीर ही बचा है मेरी आत्मा तो जा चुकी है। आज से तक़रीबन १२-१५ वर्ष पहले जब दादाजी ने मेरा जीवन बीमा करवाके मुझसे कहा था कि "जब तक हम हैं तब तक हम भरेंगे ,हमारे बाद तुम " इतना सुनते ही मैं बहुत तेज़ रोया था उनसे लिपटकर। मुझे हमेशा इस ख़याल से ही दर लगता था कि उनसे बिछडके मैं जीऊंगा कैसे?????
आज वो नहीं हैं मेरे पास लेकिन मै जब दुनिया से जाऊँगा तभी समझूंगा कि अब मेरे दादू मेरे साथ ही जा रहे हैं,तब तक वो मेरे अंदर हमेशा रहेंगे। और शायद उन्ही को आत्मसात करने का परिणाम है कि आज इतनी विपरीत परिस्थितिओं के बावजूद मेने हिम्मत नहीं हारी,क्यूँकी उनसे ज्यादा हिम्मत और धैर्य वाला इंसान देखा ही नहीं था। इसीलिए मुझे कभी बाहर अपना आदर्श ढूंढने की आवश्यकता ही नहीं पड़ी।
मेरी कंपनी जिसमें मै काम कर रहा था सन २०११ से ,उसने सैलरी ही देना बंद कर दिया और हम साइट एम्प्लाइज को वापस बुला लिया गया। फिर अनैतिक तरीके से हमें बेरोज़गार कर दिया। मैने लेबर वेलफेयर कोर्ट में शिकायत की लेकिन लेबर इंस्पेक्टर कंपनी से रिश्वत लेकर मुझपे दबाव बना रहा था कि कंपनी के अनुसार मैं समझौता करलू वरना मुझे कुछ नहीं मिलेगा। उस इंस्पेक्टर ने गलत नोटिस बनाके भेज दिया जिसका परिणाम ये हुआ कि मेरा और मेरे सहकर्मचारियों का केस निरस्त कर दिया गया। लेकिन हमने फिर हिन्द मजदूर यूनियन संगठन में शिकायत दर्ज़ कराके केस किया लेकिन कंपनी से कोई नहीं आया। बस तारीखें बढ़ती जा रही हैं। छः माह से बस हम कोर्ट जा रहे हैं लेकिन हमने हिम्मत नहीं हारी है।
पिछले एक साल से लगातार दूसरी नौकरी ढूंढने की कोशिश कर रहा हूँ। कई बार निराशा भी मन में आई,हीनभावना मन में घर करने लगी पर एक अदृश्य शक्ति मुझे गिरने नहीं देती थी। इस मुश्किल समय में मेरे दिल्ली वाले मौसाजी और मौसीजी और उनके परिवार ने मुझे हर हताशा से बचाया। मै अपनी आखिरी सांस तक उनका ऋणी रहूँगा।
और भी बहुत सी व्यक्तिगत परिस्थितियाँ ऐसी हैं ,जो मुझे हर तरह से जकड़े हुए हैं। लेकिन मैं हिम्मत और धैर्य के साथ इन सब परिस्थितिओं से लड़ूंगा और जीतूंगा भी,फिर आप सबसे मैं अपना विजयी अनुभव बाटूंगा भी। अपनी दुआयें जरूर दीजिये।
हिम्मत और धैर्य को कभी खुदसे अलग मत करना।
एक महान शायर बशीर बद्र जी ने कहा है
"मैं दरिया हूँ अपना हुनर जानता हूँ ,जहाँ से भी निकलूँगा रास्ता हो जायेगा"
"प्रसून जैन "
मैं इन ताकतों को पहचान चुका हूँ और आज ये ताकतें ही हैं की मैं आज ये लिख पा रहा हूँ। मैने जब अपने सबसे अज़ीज़ ,मेरे आदर्श ,मेरे दादाजी को खोया तब मुझे लगा जैसे अब सिर्फ शरीर ही बचा है मेरी आत्मा तो जा चुकी है। आज से तक़रीबन १२-१५ वर्ष पहले जब दादाजी ने मेरा जीवन बीमा करवाके मुझसे कहा था कि "जब तक हम हैं तब तक हम भरेंगे ,हमारे बाद तुम " इतना सुनते ही मैं बहुत तेज़ रोया था उनसे लिपटकर। मुझे हमेशा इस ख़याल से ही दर लगता था कि उनसे बिछडके मैं जीऊंगा कैसे?????
आज वो नहीं हैं मेरे पास लेकिन मै जब दुनिया से जाऊँगा तभी समझूंगा कि अब मेरे दादू मेरे साथ ही जा रहे हैं,तब तक वो मेरे अंदर हमेशा रहेंगे। और शायद उन्ही को आत्मसात करने का परिणाम है कि आज इतनी विपरीत परिस्थितिओं के बावजूद मेने हिम्मत नहीं हारी,क्यूँकी उनसे ज्यादा हिम्मत और धैर्य वाला इंसान देखा ही नहीं था। इसीलिए मुझे कभी बाहर अपना आदर्श ढूंढने की आवश्यकता ही नहीं पड़ी।
मेरी कंपनी जिसमें मै काम कर रहा था सन २०११ से ,उसने सैलरी ही देना बंद कर दिया और हम साइट एम्प्लाइज को वापस बुला लिया गया। फिर अनैतिक तरीके से हमें बेरोज़गार कर दिया। मैने लेबर वेलफेयर कोर्ट में शिकायत की लेकिन लेबर इंस्पेक्टर कंपनी से रिश्वत लेकर मुझपे दबाव बना रहा था कि कंपनी के अनुसार मैं समझौता करलू वरना मुझे कुछ नहीं मिलेगा। उस इंस्पेक्टर ने गलत नोटिस बनाके भेज दिया जिसका परिणाम ये हुआ कि मेरा और मेरे सहकर्मचारियों का केस निरस्त कर दिया गया। लेकिन हमने फिर हिन्द मजदूर यूनियन संगठन में शिकायत दर्ज़ कराके केस किया लेकिन कंपनी से कोई नहीं आया। बस तारीखें बढ़ती जा रही हैं। छः माह से बस हम कोर्ट जा रहे हैं लेकिन हमने हिम्मत नहीं हारी है।
पिछले एक साल से लगातार दूसरी नौकरी ढूंढने की कोशिश कर रहा हूँ। कई बार निराशा भी मन में आई,हीनभावना मन में घर करने लगी पर एक अदृश्य शक्ति मुझे गिरने नहीं देती थी। इस मुश्किल समय में मेरे दिल्ली वाले मौसाजी और मौसीजी और उनके परिवार ने मुझे हर हताशा से बचाया। मै अपनी आखिरी सांस तक उनका ऋणी रहूँगा।
और भी बहुत सी व्यक्तिगत परिस्थितियाँ ऐसी हैं ,जो मुझे हर तरह से जकड़े हुए हैं। लेकिन मैं हिम्मत और धैर्य के साथ इन सब परिस्थितिओं से लड़ूंगा और जीतूंगा भी,फिर आप सबसे मैं अपना विजयी अनुभव बाटूंगा भी। अपनी दुआयें जरूर दीजिये।
हिम्मत और धैर्य को कभी खुदसे अलग मत करना।
एक महान शायर बशीर बद्र जी ने कहा है
"मैं दरिया हूँ अपना हुनर जानता हूँ ,जहाँ से भी निकलूँगा रास्ता हो जायेगा"
"प्रसून जैन "
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