फ़रेब

निकलके फ़रेब के जंगल से ,फिर काँटा चुभा फ़रेब का।
फ़रेब के जंगल से निकलना भी, बस एक फ़रेब है।।

चाहत को रौंद देते हैं ,प्यार को बदनाम करते हैं। 
झूठ बोलने वाले ,यही बस काम करते हैं।।

धोखा देने को अपना हुनर मानते हैं ये फ़रेब करने वाले। 
इससे तो खुशनसीब होते हैं ,प्यार में मरने वाले।।

और क्या रखा है अपने सीने  में ,इस बेदर्द ज़िन्दगी ने। 
क्यों मेरी ज़िन्दगी का हर पल ,झुलसता हुआ सा है।।

हर धड़कन कराह रही है मेरी ,हर सांस सिसकने लगी है अब। 
या खुदा बस मौत देदे ,छूट गई अब जीने की तलब।। 

क्यों हर बार ना चाहते हुए भी ,हिस्से में दर्द ही आता है। 
लड़ूँ दर्द से अब मैं ,या दर्द को ही अपना सुकूँ बनालूँ।।


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