जीने नहीं देती हमको, इच्छाओं की अंतहीनता
जीने नहीं देती हमको, इच्छाओं की अंतहीनता।
ना पूरी हो तो ला देती हैं, ये विचारों में संकीर्णता।
हावी होने देते हैं, इन सबको जब खुद पर हम।
हर पल नाखुश से जीवन का रहता है हम सबको भ्रम॥
पा लेते हैं जो कुछ हम, उसकी खुशियाँ कब हैं मनाते।
अब वह, फिर वह करते करते, पाई हुई खुशियाँ हैं गँवाते।
ये वह लहरें हैं जो, साहिल से मिला नहीं करती।
जिसको भी डुबोदे ये लहरें, लेकिन गिला नहीं करती॥
होती इंद्रधनुष-सी सतरंगी, करती जीवन को बेरंग।
पूरी होने की होड़ में, करती हैं बस हमको तंग।
छोटा-सा ये जीवन अपना, क्यूँ इसको खुलके ना जियें हम।
दिया जलाएँ बस खुशियों का, क्यूँ होने दें दुखों का तम॥
जीवन ऐसे जीना है कि हर सांस गर्व करे हम पर।
पाना भी है सबकुछ, बस रखना नहीं ख़ालिशों का ज़हर।
खुद पर इन इच्छाओं को हावी नहीं होने देना है।
छोटी छोटी खुशियों को यूँ ही ना खोने देना है॥
ये ही इक इच्छा हो बस कि जीवन सार्थक हो जाए।
फिर चाहे अंतिम सांस को, जिस पल आना हो आ जाये।
चेहरे पर रखकर ओज सूर्य सा, रूह को विदा करेंगे हम।
मृत्यु के भी नेत्र सजल हों, ऐसे बाँहों में भरेंगे हम॥
आये हैं जब दुनिया में तो जीकर तो हम जाएंगे।
खुलके जीकर सबकुछ पाकर जीवन सफल बनायेंगे॥
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