KUCH HARAF

THA ALMIYA-E-ZINDAGI KI MERA PAASWA HI MERA KAATIL NIKLA
MERE JISM O RUH KI DAST O GIREBAAN KI SAAZISH ME WO SHAAMIL NIKLA
IS MUKHTSAR SI ZINDGI ME GURBAT MUKADDAS ISHQ KI RAHI
JISE SAMAJHKE CHAL RAHA THA PYAAS MITAANE WALA DARIYA
WO TO VIRAAN AUR SUKHA HUA SAAHIL NIKLA....

BAAR BAAR RULA JATI HAI ZINDGI MAGAR KHUSH HU ME
TARAH TARAH SE SATATI HAI ZINDGI MAGAR KHUSH HU ME
MUSKAN MERE LABO PE THAHAR NAHI PATI
TADPA JATI HAI YE ZINDGI MAGAR KHUSH HU ME
KAB TAK IN KHALAAO SE MAYUS RAHU ME
RUKA HUA PANI NA BANKE JHARNE SA BAHU ME
AADATAN KAHAR DHAATI HAI ZINDGI MAGAR KHUSH HU ME

किसी के विपरीत समय में उसे नीचा दिखाने के वजाय उसका साथ दो,क्योंकि पतझड़ के बाद बसंत भी आता है। कल हो सकता है तुम्हारे खुशियों के उजड़े हुए वन को फिर से खिलाने वाला वो ही एकमात्र माली निकले। डूबते हुए को बचालो हो सकता है कल वो ही तुम्हें किसी बेतरनी नदी से पार लगादे।

संकट के समय हमें जो बढ़के हाथ दे,जो हमें हमारी ताकतों को उस वक़्त याद दिलाये जिन्हें हम समय की विपरीत धाराओं में फसकर भूल जाते हैं और हीनभावना हमें और कमज़ोर करने लगती हैं और हमारे अच्छे वक़्त के आने तक हमारे साथ रहे ऐसे भले सद्चरित्र,निस्वार्थ,देवदूत इंसान को कभी मत भूलो और उनके इस ऋण से इस जन्म में तो मुक्त नहीं हो सकते एसी भावना रखकर उनकी तन मन धन से सेवा करने के लिये हमेशा तत्पर रहना चाहिये।

अब मुहब्बत लुटाने को बेताब है ज़िन्दगी,
जब से मैं कज़ा का दीवाना हुआ हूँ।।




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