ओ दुनिया के संतराश नई दुनिया में वो मूर्ति बनाना

#poemonnewworld #hindipoetry
ओ दुनिया के संतराश नई दुनिया में वो मूर्ति बनाना
जिसका हर गुण सुगुण ही हो ,दुर्गुण की मिटटी ना हो।
जो सच्चाई से ढला हुआ हो जिसका कण -कण सच्चा हो।
बुराई की हवा से सूखे ना ,बस वो पाये जो अच्छा हो।
ना नफ़रत की आंधी में घिरे ,लालच से वो हिले नहीं।
चढ़े धूल मक्कारी की ,पर उसकी मिटटी से मिले नहीं।
शैतान उस दुनिया में अपना अस्तित्व ना बना सके।

पड़ जाये  उसको भी तेरी अच्छाई को अपनाना ,
ओ दुनिया के संतराश नई दुनिया में वो मूर्ति बनाना।

ना भाई ,भाई को मारे ,ना बेआबरू कोई नारी हो।
ना माँ को मारे बेटा कोई ,वो दुनिया इतनी प्यारी हो।
संतुष्ट रहे हर प्राणी ,ना लालच ,लोभ ना पाप बढे।
धर्म के नाम पे आतंक ना हो ,ना कोई भीषण मौत मरे।
हथियारों की दरकार ना हो ,ना भेदभाव ना सीमाएँ हों।
एक ही मिटटी से बने हुए सब एक दूजे के साये हों।

उस दुनिया में रहने वालों को आये परस्पर प्रेम बढ़ाना,ओ दुनिया के संतराश नई दुनिया में वो मूर्ति बनाना।




Comments

Popular posts from this blog

Andhvishwas ek kahani Part-4 [Story in Hindi]

तीस्ता का सौंदर्य [Hindi Poem on River]

सोने की चिड़िया- भाग-१